June 24, 2025

मानव कल्याण के लिए किया गया कार्य ही धर्म है-डा०”आनन्द शंकर सिंह

IMG-20220625-WA0023

मानव कल्याण के लिए किया गया कार्य ही धर्म है-डा०”आनन्द शंकर सिंह

गाजीपुर जनपद के भांवरकोल ब्लाक मुख्यालय के समीप सहरमाडीह स्थित किनवार किर्ति स्तंभ परिसर में चल रहे महामृत्युंजय यज्ञ के दौरान आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम में साहित्यिक,कृषि एवं सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को स्मृति चिन्ह एवं अंगबस्त्रम देकर सम्मानित किया गया।

 

इस मौके पर ईश्वर शरण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉo आनंद शंकर सिंह ने कहा कि भारत ईश्वरीय भूमि है। भारत भूमि पर राम कृष्ण का विग्रह पैदा हुआ है। उन्होंने कहा कि वेदों में लिखा गया है कि भारत आध्यात्मिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक भारत है।

दुनिया में वेद एक ऐसा ग्रंथ है जो हजारों वर्ष पूर्व ऋषि-मुनियों एवं सन्यासियों द्वारा आज भी लिपिबद्ध करने के बाद इसके महत्व को दुनिया के सामने रखा जिसे मानने को लोग विवश हैं ।

उन्होंने कहा कि वेद अलग अलग है लेकिन उपनिषद एक बेदान्त है जो लोगों के लिए अनुकरणीय है ।उन्होंने कहा कि जो वेद को जानता है वह ब्राम्हण है और जो ब्रह्म को जानने वाला है वह ब्राह्मण है। ब्रह्मा वेद को जाना वह ब्रह्म को मानने वाला ब्राम्हण है। उन्होंने कहा कि वेद को जानने वाला है वह ब्रह्मज्ञानी है ।

वेद में जो दर्शन है जो भाव है वह पूरे मानव जाति के कल्याण के लिए अनुकरणीय है जो अपने को जाने यही ब्रह्मणत्व है। वेदों को अध्यात्म से जोड़ना एक विज्ञान है उन्होंने कहा कि दुनिया की किसी भी धर्म का कोई सिद्धांत नहीं है परंतु भारत का मानव कल्याण के लिए बहुत बड़ा आधार है उन्होंने धर्म की ब्याख्या करते हुए कहा कि मानव कल्याण के लिए किया गया कार्य ही धर्म है।

भारत का धर्म समावेशी है तथा सभी के कल्याण हेतु बना है। उन्होंने कहा कि यज्ञ हमारे भारत की हज़ारों बर्ष पुरानी पद्धति है।यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है।यह वैज्ञानिक सत्य है। काफी पूर्व से पर्यावरण को बचाने के लिए हमारे श्रृषियों,मुनियों,साधू संन्यासियों ने यज्ञ कराया है।ऐसे में वायु का शोधन यज्ञ से ही सम्भव है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि कर्मयोग ही योग है। जो निमित्त है तो योग है।योग से एक दूसरे को जोड़ना ही योग है। उन्होंने धर्म को परिभाषित करते हुए कहा कि भौतिक स्मृद्धि के साथ यदि मरने के बाद निर्वाण व मोक्ष दोनों प्राप्त हो तथा समाज को जो मजबूत बनाए यही धर्म है। क्योंकि अर्थ भी धर्म से नियंत्रित होता है।ऐसे में पुरूषार्थ ज्ञान से ही सम्भव है।

यही भारत का धर्म एवं कौशल है। पुरूषार्थ तीन है।धर्म,मोक्ष एवं काम सभी धर्म से ही नियंत्रित होगा।ऐसे में ज्ञान प्राप्त कर समाज के लिए कार्य करें। उन्होंने कहा कि एक संन्यासी का चिन्तन समाज है। यहां समग्र चेतना का विकास संन्यासी का धर्म है। आज से नहीं बल्कि श्रृषियों ने पेड़ के पूजा की परम्परा बनाई। कैसे पर्यावरण की रक्षा होगी यह कार्य एक सन्त ही संरक्षित करा सकेगा। बल्कि परम्परा को जीने एवं इसकी चिंता करने की आवश्यकता है यही धर्म है। हमें दुनिया को जितना नहीं बल्कि हमें दुनिया का कल्याण करना है।

 

उन्होंने कहा कि भारत के ईश्वरीय भूमि पर हमारे संन्त एवं संन्यासी हमारे सांस्कृति के धरोहर है। हमारे संन्तों ने हजारों वर्षों से भारत की चिंता है। सन्तों ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई है इतिहास गवाह है। भारत की संस्कृति को बचाने के लिए संतो ने शस्त्र उठाया है।

इस मौके पर दण्डी स्वामी अनंन्तानंद सरस्वती, त्रिदंडी स्वामी रामानुजाचार्य,पंकज राय.अवनीश राय.जय शंकर राय. संन्तोष राय, बिजेंन्दर राय, रामभुवन राय, हर्ष राय, अनिल राय,सन्तोष राय. विमलेश राय, शशांक शेखर राय,विजय शंकर राय, विनय राय, छांगुर राय,नागा दूबे, संजय पाण्डेय, आनंद राय बबलू, कमलेश शर्मा समेत ढेर सारे लोग मौजूद रहे।

About Post Author