UPSC 2021में हिंदी माध्यम का परचम बुलंद -निरतंर प्रयास व हार न मानने की जिद्द ने रवि कुमार सिहाग को बनाया IAS ,हिंदी माध्यम से लगभग सात साल बाद IAS में ऑल इंडिया रैंक 18

UPSC 2021में हिंदी माध्यम का परचम बुलंद -निरतंर प्रयास व हार न मानने की जिद्द ने रवि कुमार सिहाग को बनाया IAS ,हिंदी माध्यम से लगभग सात साल बाद IAS में ऑल इंडिया रैंक 18
IAS रवि कुमार सिहाग राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के रहने वाले हैं। इनके पिता राम कुमार सिहाग एक साधारण किसान हैं जबकि मां विमलादेवी एक गृहणी। रवि तीन बहन व एक भाई में सबसे छोटे हैं।
रवि की शुरुआती पढ़ाई अपने गांव के सरकारी स्कूल से पूरी हुई। उनके पिता का सपना जरूर था कि बेटे को बड़ा अफसर बनाना है लेकिन खेती किसानी में इतनी कमाई नहीं हो पाती थी कि उन्हें किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाया लिखाया जा सके। इसलिए उनकी शुरुआती पढ़ाई वहीं से पूरी हुई।
2015 में रवि ने अपने जिले से ही ग्रैजुएशन पूरा किया। उसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। वजह थी कि उनकी बहन की शादी होनी थी उसकी जिम्मेदारी संभालने के लिए पिता के आलावा घर में सिर्फ रवि ही थे। इसलिए मजबूरी में उन्हें एक साल तक घर में रहना पड़ा।
बहन की शादी के बाद रवि ने अपने पिता को सिविल सर्विस की तैयारी करने की अपनी मंशा बताई। उनके पिता तैयार तो हो गए लेकिन उसमे खर्च कितना आएगा ये सोचकर वह चिंता में पड़ गए। उस समय उनकी सालाना आया लगभग 50 हजार रूपए थी। उसी 50 हजार में खेती किसानी के आलावा घर भी
लेकिन उन्होंने बेटे को तैयारी के लिए दिल्ली भेजने का निर्णय ले लिया। रवि ने दो साल तक दिल्ली में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी की। रवि को हिंदी मीडियम से पढ़ाई के कारण कुछ तैयारी में समस्याएं जरूर आईं। लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
साल 2018 में रवि ने पहली बार UPSC का एग्जाम दिया। रवि ने पहले ही प्रयास में सिविल सर्विस एग्जाम क्रैक कर लिया। उन्हें 337वीं रैंक मिली। रवि के सिविल सर्विस क्रैक करने के बाद उनके परिवार व उनके गांव में लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। लोग इस बात की तारीफ़ कर रहे थे कि अभावों में भी रहते हुए रवि ने पहले ही प्रयास में ये मुकाम हासिल कर लिया था।
रवि कुमार सिहाग पुनः 2021 में चौथी बार आईएएस रैंक के लिए परीक्षा में बैठे और लगभग सात सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। उन्होंने हिंदी माध्यम से अखिल भारतीय स्तर पर 18 वां स्थान प्राप्त कर हिन्दी का परचम बुलंद कर दिया।