लाउडस्पीकर को लेकर जारी विवाद के बीच जानें क्या था सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया का आदेश
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मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक से बीजेपी नेता मस्जिदों से लाउडस्पीकर को हटाने की बात कह रहे हैं. लाउडस्पीकर विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने लाउडस्पीकर को लेकर एक आदेश पारित किया था, जो उसने 2005 में दिया था. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश क्या कहता है
लाउडस्पीकर पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सन 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी सार्वजनिक स्थल पर रात 10 से सुबह 6 बजे तक शोर करने वाले उपकरणों पर पाबंदी लगाई हुई है. इस आदेश के तहत लाउडस्पीकर से लेकर तेज आवाज वाले म्यूजिक बजाना, पटाखे चलाने से लेकर हॉर्न बजाने पर रोक लगा दी गई है. चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी और जस्टिस अशोक भान की खंडपाठ ने ये आदेश दिया था. खंडपाठ ने अपने आदेश में रात के वक्त किसी भी ध्वनी प्रदूषण करने वाले उपकरण के उपयोग पर रोक लगा दी है.
ध्वनी प्रदूषण
आमतौर पर माना जाता है कि एक आदमी की 80 डेसिबल तक की ध्वनि को बर्दाश्त की सीमा में होती है. ध्वनि प्रदूषण को मापने का पैमाना डेसिबल होता है. एक सामान्य व्यक्ति 0 डेसिबल तक की आवाज़ सुन सकता है. ये पेड़ के पत्तों की सरसराहट जितनी आवाज़ होती है. सामान्य तौर घर में हम घर में जो बातचीत करते हैं वो 30 डेसिबल के आसपास होती है. एक लाउडस्पीकर सामान्य तौर पर 80 से 90 डेसिबल आवाज पैदा करता है.
ध्वनि तीव्रता की सीमा (डेसिबल में)
ध्वनि प्रदूषण अधिनियम नियम, 2000 के मुताबिक कामर्शिलय, शांत और आवासीय क्षेत्रों के लिए ध्वनि तीव्रता की सीमा (डेसिबल में) तय की गई है. जिसमें औद्योगिक क्षेत्र के लिए दिन में 75 और रात में 70 डेसिबल तीव्रता की सीमा तय की गई है. कामर्शिलय क्षेत्र के लिए दिन में 65 और रात में 55, आवासीय क्षेत्र के लिए दिन में 55 और रात में 45. शांत क्षेत्र के लिए दिन में 50 और रात में 40 डेसिबल की तीव्रता की सीमा तय की गई है.
गौरतलब है कि इसमें दिन का मतलब सुबह 6 से लेकर रात के 10 बजे तक है. जबकि रात का मतलब रात 10 से सुबह 6 बजे तक का है.